जली रोटियां
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सब ने देखी हैं माँ की बनाई किनारों से जली रोटियां ,
जो खाई भी गई मगर माँ को कोसते हुए
कभी गवार ,तो हभी जाहिल बनी माँ
मै बस देखता रहा
कुछ न कह सका
कुछ न कर सका
सिवा छुप के रोने के
अब मै बड़ा हो चुक हूँ
देखता हूँ फिर वही दोहराते हुए
अपने उसी घर में
एक फर्क के साथ ,वही तया वही चूल्हा
और रोटियां भी वही ,मगर एक फर्क
मेरी माँ निभाती है अपनी सास की परंपरा को
और कोई मौका नहीं छोडती कोसने का
रोटियां सकती अपनी बहू को
न दिखे रोटियां सेकते माँ के जले हाँथ उस सास को
न दिखे रोटियां सेकते बहू के जले हाँथ इस सास को
और मै बुजदिल
आज भी कुछ नहीं कर पाता
सिवा छुप के रोने के …………
बहुत गहन बात कह दी ... अपने दीं भूल जाते हैं सब और दूसरों के दोष दिखाई देते हैं ..
जवाब देंहटाएंआदरनीय ,उत्साह देने हेतु धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआगे भी आपके मार्गदर्शन की अपेक्षा रहेगी