
देवी तो नहीं है मेरी माँ
कहूँगा भी नहीं
और न ही हो
सुना है रूठ जाती हैं देवियाँ
जरा जरा सी बात पर ,
पर माँ तो नहीं रूठती
कभी नहीं
परी भी नहीं है मेरी माँ
नहीं देखा उनका देश
न रूप माँ की तरह
जो हमेंशा है मेरे साथ
नहीं दूर होती एक पल भी
कभी नहीं
हाँ सोचता हूँ कभी -कभी
कह दूँ भगवान का रूप
पर नहीं ,उसे भी तो नहीं देखा
किसी भी रूप में
हाँ मगर वो कहीं होगा तो
शायद माँ के ही रूप में
जब चला हूँ पथरीली राह
यां नंगे पाँव तपती दोपहर में
पाई है माँ की हथेलिया हमेशा
अपने पैरो व् उस जमीन के बीच
बचपन से सुनता आया हूँ
माँ देवी का रूप है ,
माँ परी है भागवान की छाया है ,लेकिन
सब कुछ है इसके उलट
हाँ देविया हो सकती है माँ का एक रूप
भागवान भी होगा तो माँ की छाया सा ही
क्योंकि छाया तो अक्सर अँधेरे में
छोड़ देती है तनहा -अकेला
माँ नहीं कही भी नहीं
कभी नहीं
क्योकि देवी तो नहीं है मेरी माँ
जो रूठ जायेगी
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