दीपमाला से सज़ा सारा शहर ,
दिल की गली फिर भी अँधेरी रह गई
जाने कहाँ हम खो गए ,खुशयां हमारी
अब हंसी बस तेरी यां मेरी रह गई
कान फोडू शोर की "तहजीब" में सब खो गए
घर में" माँ" फिर से अकेली रह गई
अब तो मेरे घर भी चूल्हे चार है
गाँव पूरा एक चूल्हा ,बस पहेली रह गई
चार आने में तभी चलता था घर
घर चला जब आज मै ख़ाली हथेली रह गई
उजाले भी नहीं आते बिना रिश्वत के घर
जब से "बहना"सत्ता की सहेली हो गई
बहुत ही सुन्दरता से शब्दों को सजाया है आपने....
जवाब देंहटाएं