वैसे तो होली खुशिओ का त्यौहार है ,बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है| सभी इसे अपने अपने ढंग से मानते भी है
पर क्या कभी हमने सोचा है की हमारे ख़ुशी मानाने का ढंग कितना सही है ? कहीं हम अपनी ख़ुशी के कारण किसी के दुःख का कारण तो नहीं बन रहे | यहाँ पर मुझे 10 वीं या 12 वी की पढाई में पढ़ी पंग्क्तिया याद आ रही है”आपकी आजादी वहां तक है जहा से मेरी नाक शुरू होती है”अर्थात हम वाही तक अपनी मर्जी कर सकते है जहाँ तक हमारी मर्जी दुसरो की मुसीबत न बन जाये
पर आज के परिवेश में होली मानाने के तौर तरीकों पर हमें फिर से सोचना होगा और शारीर ,कपड़ों मकानों को रंगने की अपेक्षा अपने सुविचारो से अपने व् दूसरों के मनो को रंगने की कोशिश करनी होगी |अक्सर देखने में आया है की लोग होली की छुट्टी को मस्ती से बिताना चाहते है वह मस्ती अगर हम शराब,भांग आदि का सेवन करने के बजाय घर ,परिवार के साथ कुछ रचनात्मक कार्य करके प्राप्त करें तो कहीं बेहतर होगा इससे एक तो हम होने वाली संभावित दुर्घटनाओं से भी बचेंगे एव कई बार दूसरों को अपमानित करने या खुद के अपमानित होने की स्थिति से भी बचा जा सकता है इस तरह हम होली को अपने ही नहीं अपने पूरे परिवार के किये भी यादगार बनसकते है |
इसके आलावा एक ढंग होली को दूषित करने का यह भी है कि किसी के ऊपर कीचड़ फेकना या रंगों के गुब्बारे किसी चलते वाहन व् राहगीरों पर फेकना जोकि किसी के लिए नुकसान देह हो सकता है हमें इससे भी बचना चाहिए और भविष्य कि जरूरतों को देखते हुए जहाँ तक हो सके आसानी से छूटने वाले सूखे रंगों जैसे गुलाल व् फूलो वाले रंगों का ही प्रयोग करना चाहिए इससे एक और जहाँ हम आर्थिक व् शारीरिक नुकसान से बचेंगे वही प्रकृति कि अमूल्य धरोहर जल कि बर्बादी से भी काफी हद तक बचा जा सकता है जो कि हमारी इस दुनिया के लिए ही नहीं आने वाली पीढ़ी के लिए भी हमारा उपहार होगा
एक बात और पिछले दो तीन वर्षों में देखने में आया है कि होलिका दहन वाली रात कुछ शरारती तत्व घरों ,दुकानों आदि के बाहर रक्खे हुए लकड़ी के सामान चारपाई , स्टूल ,बैंच अलमारी आदि को भी उठा कर होलिका पर जलने के लिए रख देते हैं जिससे उन लोगो के लिए जिनका की वह सामान होता है होली ख़ुशी का न होकर चिंता का त्यौहार हो जाता है
हमें स्वयं भी इन चीजों से बचना चाहिए एव ऐसे लोगो को भी इन कुक्रत्यों से रोकने का प्रयास करना चाहिए ताकि होली जैसे पवित्र त्यौहार पर गंदगी के रंग का धब्बा लगने से बच सके फिर होली तो है ही बुराइयों को त्यागने का त्यौहार |आइये होलिका दहन पर कुछ संकल्प लेने की कोशिश करें
महिलाओं व् बुजुर्गो से होली खेलने में उनके स्वाभिमान व् सम्मान का ध्यान रक्खें
जल ही जीवन है अतः इसे बचने का हर संभव प्रयास करें
नशा नाश की जड़ है व् होली होश में आने का त्यौहार है न की होश गवाने का!
पर क्या कभी हमने सोचा है की हमारे ख़ुशी मानाने का ढंग कितना सही है ? कहीं हम अपनी ख़ुशी के कारण किसी के दुःख का कारण तो नहीं बन रहे | यहाँ पर मुझे 10 वीं या 12 वी की पढाई में पढ़ी पंग्क्तिया याद आ रही है”आपकी आजादी वहां तक है जहा से मेरी नाक शुरू होती है”अर्थात हम वाही तक अपनी मर्जी कर सकते है जहाँ तक हमारी मर्जी दुसरो की मुसीबत न बन जाये
पर आज के परिवेश में होली मानाने के तौर तरीकों पर हमें फिर से सोचना होगा और शारीर ,कपड़ों मकानों को रंगने की अपेक्षा अपने सुविचारो से अपने व् दूसरों के मनो को रंगने की कोशिश करनी होगी |अक्सर देखने में आया है की लोग होली की छुट्टी को मस्ती से बिताना चाहते है वह मस्ती अगर हम शराब,भांग आदि का सेवन करने के बजाय घर ,परिवार के साथ कुछ रचनात्मक कार्य करके प्राप्त करें तो कहीं बेहतर होगा इससे एक तो हम होने वाली संभावित दुर्घटनाओं से भी बचेंगे एव कई बार दूसरों को अपमानित करने या खुद के अपमानित होने की स्थिति से भी बचा जा सकता है इस तरह हम होली को अपने ही नहीं अपने पूरे परिवार के किये भी यादगार बनसकते है |
इसके आलावा एक ढंग होली को दूषित करने का यह भी है कि किसी के ऊपर कीचड़ फेकना या रंगों के गुब्बारे किसी चलते वाहन व् राहगीरों पर फेकना जोकि किसी के लिए नुकसान देह हो सकता है हमें इससे भी बचना चाहिए और भविष्य कि जरूरतों को देखते हुए जहाँ तक हो सके आसानी से छूटने वाले सूखे रंगों जैसे गुलाल व् फूलो वाले रंगों का ही प्रयोग करना चाहिए इससे एक और जहाँ हम आर्थिक व् शारीरिक नुकसान से बचेंगे वही प्रकृति कि अमूल्य धरोहर जल कि बर्बादी से भी काफी हद तक बचा जा सकता है जो कि हमारी इस दुनिया के लिए ही नहीं आने वाली पीढ़ी के लिए भी हमारा उपहार होगा
एक बात और पिछले दो तीन वर्षों में देखने में आया है कि होलिका दहन वाली रात कुछ शरारती तत्व घरों ,दुकानों आदि के बाहर रक्खे हुए लकड़ी के सामान चारपाई , स्टूल ,बैंच अलमारी आदि को भी उठा कर होलिका पर जलने के लिए रख देते हैं जिससे उन लोगो के लिए जिनका की वह सामान होता है होली ख़ुशी का न होकर चिंता का त्यौहार हो जाता है
हमें स्वयं भी इन चीजों से बचना चाहिए एव ऐसे लोगो को भी इन कुक्रत्यों से रोकने का प्रयास करना चाहिए ताकि होली जैसे पवित्र त्यौहार पर गंदगी के रंग का धब्बा लगने से बच सके फिर होली तो है ही बुराइयों को त्यागने का त्यौहार |आइये होलिका दहन पर कुछ संकल्प लेने की कोशिश करें
महिलाओं व् बुजुर्गो से होली खेलने में उनके स्वाभिमान व् सम्मान का ध्यान रक्खें
जल ही जीवन है अतः इसे बचने का हर संभव प्रयास करें
नशा नाश की जड़ है व् होली होश में आने का त्यौहार है न की होश गवाने का!
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