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मेरे दिल की बात

मेरा पूर्ण विश्वास है की हम जो भी परमपिता परमेश्वर से मन से मागते है हमें मिलता है जो नहीं मिलता यां तो हमारे मागने में कमी है यां फिर वह हमारे लिए आवश्यक नहींहै क्योकि वह (प्रभु ) हमारी जरूरतों को हम से बेहतर जनता है फिर सौ की एक बात जो देने की क्षमता रखता है वह जानने की क्षमता भी रखता है मलकीत सिंह जीत>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>> ................ मेरे बारे में कुछ ख़ास नहीं संपादक :- एक प्रयास ,मासिक पत्रिका पेशे से :-एक फोटो ग्राफर , माताश्री:- मंजीत कौर एक कुशल गृहणी , पिताश्री :-सुरेन्द्र सिंह एक जिम्मेदार पिता व् जनप्रतिनिधि (ग्राम प्रधान1984 -1994 /2004 - अभी कार्यकाल जारी है http://jeetrohann.jagranjunction.com/

रविवार, 30 सितंबर 2012

माँ की गोद मिली है यारो , मुझको अब सो जाने दो

माँ की गोद मिली है यारो ,
मुझको अब सो जाने दो 
माँ ने सींचा था जिस तन को 
अपने तन के अमृत से 
उस तन को इस माँ के
चरणों में अर्पण हो जाने दो 
माँ की गोद मिली है यारो ,
मुझको अब सो जाने दो 
जन्म , दूध और आशिशो का 
मै कर्जदार सौ जन्मो तक 
जितना संभव था बस उतना 
मुझको कर्ज चुकाने दो 
पोंछ सको तो पोंछ देना कुछ 
आंसू भारत माँ की तक़दीर के 
कुछ पंजाब ,हिमाचल आसाम के 
कुछ मुंबई दिल्ली कश्मीर के 
तुम अधिकारों की लड़ो लड़ाई
मुझको बस फर्ज निभाने दो 

माँ की गोद मिली है यारो ,
मुझको अब सो जाने दो 
भूल जाओ अब चश्मा चरखा
दिन बीत गए हैं बातों के
बिगड़े तीनो बन्दर अब न
मानेगे बिन लातों के 

समय हो चुका अब बाजी
सर धड की लग जाने दो 
माँ की गोद मिली है यारो ,
मुझको अब सो जाने दो 
भारत माँ की गोद मिली है 
मुझको अब सो जाने दो

सोमवार, 4 जून 2012


रक्त दान !!काश ऐसा हो
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अभी कुछ ही दिनों की बात है ,मेरे एक मित्र  जो कि दिल्ली निवासी है ,के बड़े भाई साहेब का एक जटिल आपरेशन हुआ जिसके लिए काफी मात्र में ब्लड कि जरुरत थी जो काफी  कोशिशो के बाद पूरा तो हुआ पर मन में एक सवाल रह गया ,कि देश में कितने ही लोग इस लिए काल के गाल में समा जाते है क्योंकि  उन्हें वख्त रहते खून प्राप्त ही नहीं हो पाता कारण कोई भी हो सकता है ! लेकिन कुछ कारन ऐसे भी हैं जिन्हें दूर किया जा सकता है ,जैसा कि अक्सर देखने को मिलता है कि लोग अपने  रिश्तेदारो/ मित्रो को खून देना तो चाहते है पर अपनी आर्थिक यां पारिवारिक मज्बूरिओं के कारण जरुरत के समय रक्त दान हेतु उस हास्पिटल तक पहुच ही नहीं पाते (ऐसा मेरे साथ भी हुआ जब चाह कर भी किसी मित्र तक नहीं पहुच सका ) क्या इस समस्या  का कोई हल नहीं  ? शायद हल है ,आज तकनिकी युग है हर जगह नए नए तकनिकी प्रयोग हो रहे है ये तकनिकी का ही कमाल है की आज घर से  निकलते समय हम जेब में नगदी नहीं देखते  a t m जो है जेब में कही घर से दूर है खर्चा ख़तम हो गया है तो घर पर फोन घुमाया ,उधर खाते में पैसे आये इधर हमने निकलवा लिए ,वो भी घर से हजारो किलोमीटर दूर ,और भी ऐसी ही कई चीजे है जो कभी असंभव सी थी पर आज सामान्य सी बात है ,हम सभी जानते है की रक्त यानी खून किसी भी तरीके से बनाया नहीं जा सकता पर किसी भी ब्लड बैंक में आप एक यूनिट ब्लड दे कर बदले में अपनी जरुरत के ग्रुप का एक यूनिट ब्लड प्राप्त कर सकते है आसन सा काम है पर सोचिये आप घर से दूर अजनबियों में है आपको चार यां छह यूनिट ब्लड चाहिए आपके रिश्तेदार दूर है ब्लड तो देना चाहते है पर आप तक पहुचना संभव नहीं है हो सकता है जब तक कोई रिश्तेदार यां मित्र समय निकल कर पहुचे मरीज के नाम के साथ स्वर्गीय लग जाये ये तो थी समस्या
अब समाधान क्या ऐसा नहीं हो सकता की मै अपने व्यस्त समय से एक घंटा निकालू अपने शहर के ब्लड बैंक जाऊ अपना एक यूनिट ब्लड निकलवाऊ और देश भर में किसी भी शहर में बैठे अपने रिश्तेदार को अपना रक्त दान की स्लिप इ मेल करूँ और उन्हें वह स्लिप दिखने पर उस शहर में ब्लड बैंक से एक यूनिट ब्लड प्राप्त हो जाय कितना समय बचेगा ,कितना आवागमन में लगने वाला खर्चऔर सबसे बड़ी बात कितनी कीमती जाने बच जाएगी अगर यह परिकल्पना सच हो जाये तो शायद खून की कमी से मेरे देश में कोई जान न जाये ! कोशिश हो तो दोस्तों यह असंभव तो नहीं यदि धन प्राप्त करने के लिए यह तकनीक इस्तेमाल हो सकती है तो यहाँ क्यों नहीं आइये हम सब मिल कर अपने अपने स्तर से  कोशिश करें  दोस्तों कोशिशे ही तो कामयाब होती है

शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

देवी तो नहीं है मेरी माँ


mother1 ok
देवी तो नहीं है मेरी माँ
कहूँगा भी नहीं
और न ही हो
सुना है रूठ जाती हैं देवियाँ
जरा जरा सी बात पर ,
पर माँ तो  नहीं रूठती
कभी नहीं
परी भी नहीं है मेरी माँ
नहीं देखा उनका देश
न रूप माँ की तरह
जो हमेंशा  है मेरे साथ
नहीं दूर  होती एक पल भी
कभी नहीं
हाँ सोचता हूँ कभी -कभी
कह दूँ भगवान का रूप
पर नहीं ,उसे भी तो नहीं देखा
किसी भी रूप में
हाँ मगर वो कहीं होगा तो
शायद माँ के ही रूप में
जब चला हूँ पथरीली राह
यां नंगे पाँव तपती दोपहर में
पाई है माँ की हथेलिया हमेशा
अपने पैरो व् उस जमीन के बीच
बचपन से सुनता आया हूँ
माँ देवी का रूप है ,
माँ परी है भागवान  की छाया है ,लेकिन
सब कुछ है इसके उलट
हाँ देविया हो सकती है माँ का एक रूप
भागवान भी होगा तो माँ की छाया सा ही
क्योंकि छाया तो अक्सर अँधेरे में
छोड़ देती है तनहा -अकेला
माँ नहीं कही भी नहीं
कभी नहीं
क्योकि देवी तो नहीं है मेरी माँ
जो रूठ जायेगी