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मेरे दिल की बात

मेरा पूर्ण विश्वास है की हम जो भी परमपिता परमेश्वर से मन से मागते है हमें मिलता है जो नहीं मिलता यां तो हमारे मागने में कमी है यां फिर वह हमारे लिए आवश्यक नहींहै क्योकि वह (प्रभु ) हमारी जरूरतों को हम से बेहतर जनता है फिर सौ की एक बात जो देने की क्षमता रखता है वह जानने की क्षमता भी रखता है मलकीत सिंह जीत>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>> ................ मेरे बारे में कुछ ख़ास नहीं संपादक :- एक प्रयास ,मासिक पत्रिका पेशे से :-एक फोटो ग्राफर , माताश्री:- मंजीत कौर एक कुशल गृहणी , पिताश्री :-सुरेन्द्र सिंह एक जिम्मेदार पिता व् जनप्रतिनिधि (ग्राम प्रधान1984 -1994 /2004 - अभी कार्यकाल जारी है http://jeetrohann.jagranjunction.com/

शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2011

“गौ दान ” कितना पुण्य कितना पाप ??


गौ दान को यु तो हमारे धर्म ग्रंथो में बड़ा महत्व पूर्ण दर्जा है और हर उग में इसे पुण्य का pratik mana गया है यहाँ तक की आज भी शादी आदि के मौके पर इस रस्म को पूर्ण या सांकेतिक रूप में निभाया जाता है लेकिन आज के parivesh में जब हरियाली का भूभाग सिमित होता जा रहा है और हर आदमी स्वार्थी हो गया है पुन्य के लिए गौदान के नाम पर एक गौवंशीय (बछड़ा या बछिया ) को खरीद कर खुला छोड़ देना कहाँ तक जायज है|
अकसर देखा गया है की ऐसे छोड़े गए गौवंशी या तो सडको पे घूमते हुए यता यात में व्यवधान पैदा करते है ,बाजार में दुकानों पर रखे खाद्य व् अखाद्य पदार्थ को नोचते खसोटते है यहाँ तक की कूड़े के ढेर से पोलीथिन आदि खाते भी देखे जाते है ‘ और कभी कभी तो भूख से आंदोलित हो कर मनुष्यों पर आक्रमणकारी भी हो जाते है जो की मनुष्यों एवं गोवंशीय दोनों के लिए घटक सिद्ध होता है
यह हल तो शहरो का ग्रामीण क्षेत्रो में भी कामो बेश यही हालत है फर्क है तो बस इतना के यहाँ ये गोवंशीय म्हणत काश किसानो का सिरदर्द बनते है और उनकी खून पसीने की म्हणत से उगे फसलो को चटकरजाते है जिसके फलस्वरूप किसान भाई उन्हें लाठियों डाँडो से प्रतंडित भी करते है और पाप के भागी बनते है और उधर वो गौवंशीय भी हिंसक होते जाते है
अब सवाल यह उठता है की पुण्य की मंशा से इन्हें छोड़ने वाले जजमान पाप के भागी न्होगे के पुण्य के ?
हाँ यदि हम वास्तव में गौदान करना ही चाहते है तो क्यों न एक गे को पुरे मनोयोग से पाले उसके भरपेट भोजन रहने ,की उचित व्यवस्था करे पुण्य भी कमाए और अपने आसपडोस के वातावरण को भी शुद्ध रख सके ताकि गोदान सांकेतिक न हो कर पूर्ण व् फलदायी हो सके

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