बस अपनी गति से आगे बढे जा रही थी ,पर मेरे ख्याल बार बार वहीँ लौट आते थे
कानो में बार बार शहनाई की धुन गूंजने लगती ,कभी हनथो में लगी महंदीनज़र आने लगती ,तो कभी सेहरे से सजा एक अंजान चेहरा , कभी हस्ते खेलते लोग ……………..
…………………….कितनी उमंगें थी दिल में कितने अरमान थे |कई किस्से सुन रक्खे थे शादी के बारे में ,किस्से हकीकत में बदलने को बेताब थे ,बारात आई ,स्वागत हुआ ,रस्मे पूरी हुई और ढेरों अरमान लिए मै ससुरह के लिए विदा हो गई
ससुराल पहुची ,जैसे खुशियाँ मेरे साथ साथ यहाँ तक चली आई थीं सजा हुआ घर ,गाजे बजे ,कुछ लोग नाचने गाने में मस्त थे तो कुछ लोग साथ आया दहेज़ का सामान सलीके से उतार रहे थे
कुछ दुल्हन को देख रहे थे ,तो कुछ दुल्हन के दहेज़ को |
दो तीन दिनों में ही मेहमान जा चुके थे घर में सास ,ससुर ,ननददेवर ,और वो जो अब अंजान न था बस इतने ही लोग ,जिनकी रूचि अब बहु में कम उसके दहेज़ में ज्यादा थी | शायद किस्सों की हकीकत ने एक और करवट बदली थी |
अब चर्चा का विषय बदल चूका था |बहु ये लाई ये नहीं लाई से वो क्यों नहीं लाई चर्चा में शामिल हो चूका था
धीरे धीरे चर्चा बहस में और बहस जिद में तब्दील हो है कुछ ही दिनों में अरमान और उम्मंगें लम्बी डिमांड लिस्ट के नीचे दब गईं
दो ही मैनो में मांग पूरी न होने पर बहु घर से बहार और बदचलनी का आरोप ………..इतना सब काफी था मेरी मायके वापसी और पिता जी के हृदयाघात के लिए ,
“बहन जी महिपाल पुर आ गया ” कंडक्टर की आवाज ने मुझे वर्तमान में ला दिया | अब मुझे तीस मील का सफ़र ऑटो से करना था गोसाई पूरा का ,जहाँ पिता जी के मित्र और मेरे पूज्य गुरु जी आचार्य धर्मेन्द्र जी रहते थे |
ऑटो के गति पकड़ते ही मन फिर पुराणी बाते सोचने लगा -पिता जी के बाद पिछले दो साल में चार ख़त गुरु जी के बुलावे के मिल चुके थे पर हर बार घर की इज्जत ,समाज का ख्याल , लोग क्या कहेंगे की बातें मुझे कितने कितने तरीको से बताई गईं | आखिर मेरे सब्र का भी अंत हो चूका था -मैं क्यों सोचुसमाज के बारे में जिसने मेरे बारे में नहीं सोचा ,क्यों ख्याल करूँ लोगों की बातों का उन्होंने मेरा क्या ख्याल किया ,कहाँ था समाज जब दहेज़ दानव ने मेरे सर से एक पिता का साया छीना
क्यों न दी गई यह शिक्षा उन राक्षसों को जिनकी मै बहु ,भाबी ,पत्नीथी
मैमे अगर पहल न की तो कोई लड़की न कर सकेगी |
मै निकलूगी घर से ,जाऊगी पढ़ाने| फिर से शुरू करुँगी जीवन और फिर से तलाश करुँगी वो उम्मीदे वो उमंगें
जो ये समाज न दे सका
मलकीत सिंह जीत
9935423754jeetrohann @gmail .com
veryy good sir ji thanx
जवाब देंहटाएंफिर से तलाश करुँगी वो उम्मीदें
जवाब देंहटाएंजो समाज मुझे दे ना सका ...
अच्छा फैसला लिया गया
साहसिक !
मै निकलूगी घर से ,जाऊगी पढ़ाने| फिर से शुरू करुँगी जीवन और फिर से तलाश करुँगी वो उम्मीदे वो उमंगें
जवाब देंहटाएंकर्तव्यों के प्रति सचेत करती पंक्तियाँ......बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक लेखन .
कृपया मेरे ब्लॉग्स पर भी आएं ,आपका हार्दिक स्वागत है -
http://ghazalyatra.blogspot.com/
http://varshasingh1.blogspot.com/
बहु ये लाई ये नहीं लाई से वो क्यों नहीं लाई चर्चा में शामिल हो चूका था.....
जवाब देंहटाएंਬਹੁਤ ਕੁੱਜ ਯਾਦ ਦਿਲਾ ਗਈ ਤੁਹਾਡੀ ਕਹਾਣੀ .....
ਇਹੋ ਜੇਹੇ ਫੈਸਲੇ ਲੈਣ ਲਈ ਵੀ ਬੜਾ ਹੋਂਸਲਾ ਚਾਹਿਦਾ ....
ਕੇਹੜੀ ਪਤ੍ਰਿਕਾ ਹੈ ਤੁਹਾਡੀ ....?
ਪੰਜਾਬੀ ਦੀ ਜਾਂ ਹਿੰਦੀ ਦੀ ....?
malkit ji...
जवाब देंहटाएंvery nice real time creation, thanks for visiting my blog, keep coming.
बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक लेखन
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